5182482

Total Users

338

Live Users

ब्रिक्स की ज़रूरत पर पूछे गए सवाल पर विदेश मंत्री जयशंकर के जबाब की हो रही चर्चा

रिपोर्ट : NewsNextIndia
Uttarpradesh | आगरा

01-01-1970

190 ने देखा



NewsNext | हिंदी न्यूज़ | Hindi Samachar | Latest News

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की टिप्पणियां अक्सर चर्चा में रहती हैं. इन टिप्पणियों में कई बार तंज़ होते हैं तो कई बार चुभने वाले जवाब. विदेशी मंचों पर भारत की विदेश नीति से जुड़ा सवाल हो या पीएम नरेंद्र मोदी के रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को गले लगाने का सवाल. जयशंकर के दिए जवाब ख़बरों और सोशल मीडिया पर चर्चा में आ जाते हैं. जयशंकर का दिया एक ऐसा ही जवाब चर्चा में है.

जयशंकर ने 12 सितंबर को स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में ग्लोबल सेंटर फोर सिक्योरिटी पॉलिसी कार्यक्रम में शिरकत की. इस दौरान जयशंकर से ब्रिक्स की ज़रूरत पर सवाल पूछा गया. ब्रिक्स ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन और साउथ अफ़्रीका की अगुवाई वाला समूह है.

दुनिया की जीडीपी में ब्रिक्स की हिस्सेदारी 27 फ़ीसदी की है. वक़्त के साथ इस समूह से जुड़ने वाले देशों की संख्या बढ़ी है और इसे अमेरिका की अगुवाई वाले समूहों के विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा है.

जयशंकर ने ब्रिक्स की अहमियत पर क्या जवाब दिया

जयशंकर से पूछा गया कि ब्रिक्स क्लब (समूह) क्यों बना है और इसके विस्तार पर आप क्या सोचते हैं?

जयशंकर ने जवाब दिया, ''ईमानदारी से कहूं तो ब्रिक्स क्लब इसलिए बना क्योंकि जी-7 नाम का एक क्लब पहले से था. आप उस क्लब में किसी को घुसने नहीं देते थे. तो हमने कहा कि हम अपना क्लब ख़ुद बनाएंगे.''

जयशंकर ने कहा, ''हम अच्छे ख़ासे देश के अच्छे नागरिक हैं, जिनकी वैश्विक समाज में अपनी जगह है. ऐसे ही क्लब बनते हैं. ऐसे ही ये शुरू हुआ. दूसरे क्लब की ही तरह वक़्त के साथ ये खड़ा हुआ. दूसरों को भी इसकी अहमियत समझ में आई. ये एक दिलचस्प समूह है. दूसरे समूह भौगोलिक या मज़बूत आर्थिक कारणों से एक दूसरे से जुड़े होते हैं. मगर ब्रिक्स में रूस, चीन, ब्राज़ील, भारत, साउथ अफ़्रीका जैसे देश हैं. इन देशों में कॉमन ये था कि बड़े देश वैश्विक व्यवस्था में ऊपर उठ रहे हैं.''

ब्रिक्स के विस्तार के बारे में जयशंकर ने कहा, ''बीते कुछ सालों में हमने देखा कि कई और देश इससे जुड़ना चाहते हैं. हमने पिछले साल जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स के विस्तार का फ़ैसला किया. हमने नए देशों को न्योता भेजा. हम अगले महीने रूस के कज़ान में इस समूह की बैठक के लिए मिलने वाले हैं. ब्रिक्स के तहत हमने न्यू डेवलपमेंट बैंक बनाया. ज़रूरी नहीं है कि हर मुद्दे पर हमारी सोच एक जैसी हो.''

ब्रिक्स की स्थापना 2006 में हुई थी. 2010 में इस समूह में साउथ अफ़्रीका जुड़ा. हाल ही में इस समूह में कई और देशों के शामिल होने की प्रक्रिया शुरू हुई है.
इन देशों में ईरान, मिस्र, इथियोपिया, यूएई शामिल हैं. सऊदी अरब भी इस समूह में शामिल होने पर विचार कर रहा है.

वहीं अज़रबैजान ने आधिकारिक तौर पर ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन दिया. माना जा रहा है कि ब्रिक्स में तुर्की भी शामिल होना चाहता है.

जी-20 और ब्रिक्स पर जयशंकर ने क्या कहा?

ब्रिक्स पर उठते सवालों के बीच जयशंकर से पूछा गया कि जी-7 के साथ जी-20 भी तो मौजूद है, ऐसे में ब्रिक्स की क्या ज़रूरत है?

जयशंकर ने जवाब दिया, ''मैं ये समझ नहीं पाता हूं कि जब आप ब्रिक्स के बारे में बात करते हैं तो इतने असुरक्षित क्यों हो जाते हैं. ये लोगों को इतना परेशान क्यों कर रहा है? जब जी-20 बना तो क्या जी-7 बंद हो गया? नहीं हुआ. जी-20 के साथ जी-7 का भी अस्तित्व है. तो जी-20 के साथ ब्रिक्स भी क्यों नहीं रह सकता.'' ये जवाब सुनकर सवाल पूछने वाले फ्रेंच एम्बैस्डर जीन-डेविड लेविट्टी ने कहा- कमाल का जवाब दिया.

20 देशों के समूह जी-20 कहा जाता है.

साल 1999 में जब एशिया में आर्थिक संकट आया था, तब कई देशों के वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों ने मिलकर एक फोरम बनाने की सोची, जहाँ पर विश्व के आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा की जा सके.

जी20 ग्रुप में 19 देश- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं. इसके साथ ही इस ग्रुप का 20वां सदस्य यूरोपियन यूनियन है. बीते साल भारत में जी-20 देशों की बैठक हुई थी.

जयशंकर से चीन पर भी पूछा गया सवाल

चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स में बीते दिनों एक विश्लेषण छपा था. इस विश्लेषण में भारत चीन संबंधों के बेहतर होने की राह में जयशंकर को रोड़ा बताया गया था. हालांकि ये विश्लेषण बाद में डिलीट कर दिया गया था.
इस बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा था- विदेश मंत्री चीन से रिश्तों पर बात कर चुके हैं.

जेनेवा के कार्यक्रम में जयशंकर से जब चीन से रिश्तों पर पूछा गया तो उन्होंने कहा, ''भारत चीन की सेना के बीच 75 फ़ीसदी मिलिटरी डिसइंग्जमेंट का काम पूरा हो चुका है. गतिरोध के पॉइंट से सेनाएं पीछे लौट आती हैं तो शांति बनी रहती है. तब भारत-चीन रिश्तों को सामान्य करने की दूसरी संभावनाओं को भी देख सकते हैं.''

जयशंकर के इस बयान पर बीजेपी के बाग़ी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर पूछा, ''डिसइंग्जमेंट से जयशंकर का मतलब क्या है. जयशंकर का मतलब है कि चीन भारत की कब्ज़ाई ज़मीन से पीछे हट जाएगा और भारत अपनी ज़मीन फिर वापस नहीं हासिल कर पाएगा...''

12 सितंबर को जेनेवा में जयशंकर चीन पर बोल रहे थे, उसी दिन अजित डोभाल रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की थी.

डोभाल और वांग यी की मुलाक़ात अहम बताई जा रही है. इस दौरान एलएसी पर मिलिटरी डिसइंग्जमेंट के बारे में भी बात हुई. कुछ दिन पहले ही वियतनाम में जयशंकर और वांग यी की मुलाक़ात हुई थी.

भारत चीन ने इस बात की पुष्टि नहीं की है लेकिन वांग और डोभाल की मुलाक़ात में कज़ान में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम मोदी के बीच मुलाक़ात की संभावनाओं के बारे में बात हुई है.

अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने सोशल मीडिया पर लिखा, ''भारत यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थ की भूमिका अदा करना चाह रहा है. वहीं चीन और भारत के बीच तनाव रूस कम करना चाह रहा है. पीएम मोदी और जिनपिंग कज़ान में मिल सकते हैं.''

साभार bbc

FACEBOOK TwitCount LINKEDIN Whatsapp

NewsNext | हिंदी न्यूज़ | Hindi Samachar | Latest News


© COPYRIGHT NEWSNEXT 2020. ALL RIGHTS RESERVED. Designed By SVT India